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उमर अब्दुल्ला साहिब का कहना है कि अनुच्छेद ३७० के बारे में कोई फ़ैसला तो राज्य की संविधान सभा ही कर सकती थी अब क्योंकि वह सभा अपनी उम्र भोग कर मर चुकी है इसलिये अब अनुच्छेद ३७० अमर हो गया है । यानि बाप मरने से पहले जो लिख गया था अब उसको हाथ नहीं लगाया जा सकता क्योंकि उसमें हेर फेर का अधिकार तो बाप को ही था । अब वह नहीं रहा तो अनुच्छेद ३७० भी अमर हो गया । यह सोच ही अपने आप में सेमेटिक सोच है । उमर अब्दुल्ला को जान लेना चाहिये कि यह बात "आतिशे चिनार" के बारे में तो सच हो सकती है अनुच्छेद ३७० के बारे में नहीं । जम्मू कश्मीर राज्य की संविधान सभा , जिन दिनों ज़िन्दा भी थी , उन दिनों भी वह संविधान सभा के साथ साथ राज्य की विधान सभा का काम भी करती थी और इसी प्रकार भारत की संविधान सभा भी संविधान सभा होने के साथ साथ संसद का काम भी करती थी । जम्मू कश्मीर की विधान सभा ,उसी राज्य संविधान सभा की वारिस है और इसी प्रकार भारत की संसद उस संघीय संविधान सभा की वारिस है । अनुच्छेद ३७० को विधि द्वारा संस्थापित भारत की संसद और राज्य की विधान सभा सांविधानिक तरीक़े से बदल सकती है । डा० जितेन्द्र सिंह इसी विषय पर बहस करने की बात कह रहे हैं , जिसे सुन कर अब्दुल्ला परिवार झाग उगल रहा है ।

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My first language used to be hindi
But Ipudu saavu vostundi chadavali ante
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